Tezaab
( Movie )
" 'तेजाब' कहानी एक होनहार जवान की जो आर्मी में भर्ती होकर के देश की सेवा करने का जज़्बा रखता था लेकिन हालात का मार खा कर गुनहगार बन जाता है | "
"मुन्ना" यही नाम मिला था महेश देशमुख (अनिल कपूर) को गुनाहो की इस बदनाम दुनिया में, मुन्ना उर्फ़ महेश देशमुख एक तड़ीपार है वो उसके लिए वर्जित क्षेत्र में वापस लोटता है, यह बात पुलिस इंस्पेक्टर सिंह (सुरेश ओबेरॉय) को मिलती है , मुन्ना को जो एरिया से तड़ीपार किया गया था, वह एरिया इंस्पेक्टर सिंह के कार्यक्षेत्र में आता था - इसी लिए मुन्ना की फाइल की जांच करते है, तब उनकी यादददास्त में ये आता है कि इस इंसान को वो पहले एक होनहार और आशावादी जवान और एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में मिल चुके है |
ढाय साल पहले उनकी पोस्टिंग नासिक में थी, उस वक़्त एक बैंक में डकैती हुई थी, जिसमें मुन्ने के माँ बाप कर्मचारी थे, मुन्ना और इंस्पेक्टर सिंह दोनों डकैतीकी इस घटना के गवाह के रूप में मौजूद थे, उसी समय दोनों पहली बार मिले थे, उन्हें मुन्ना का परिचय एक होनहार एनसीसी कैडेट के रूप में हुवा था। घटना स्थल पर उन्होंने मुन्ना को लुटेरों से नागरिको का रक्षण और लुटेरे का सामना करते हुवे देखा था। इंस्पेक्टर ने मुन्ना में देश के लिए मरमिटने का जुनून देखा था, पर बदकिस्मती कि बात यह थी कि इसी बैंक रॉबरी में मुन्ना के माँ बाप मारे गए थे, उस दिन इंस्पेक्टर सिंह ने मुन्ने के यह दर्द को भी महसूस किया था |
वो दिन था जब इंस्पेक्टर मुन्ना को मिले थे और आज का दिन है कि मुन्नाकी गुनाहीत फाइल देख रहे है, उनके दिमाग को कई आश्चर्य और जिज्ञाशा घेर लेते है उसी बात का समाधान ढूंढने वो मुन्ना को घेर लेते है, वही उन्हें महेश देशमुख से मुन्ना तक की कहानी का पता चलता है |
माँ बाप के मृत्यु के बाद छोटी बहन ज्योति (अपर्णा सेन) की जिम्मेदारी के साथ खुद के भविष्य और करियर को संजोये हुए महेश नासिक छोड़ मुंबई आता है, जहां किराये का मकान, स्विमिंग पुल में पार्ट टाइम जॉब के साथ कॉलेज की पढाई और ये सब के साथ अपने सपनो को अंजाम देने का संघर्षमय सफर शुरू करता है, इसी यात्रा में उसकी मुलाकात मोहिनी (माधुरी दीक्षित) से होती है, मोहिनी वो लड़की थी जो बाप के होते हुवे भी एक अनाथ थी क्यों उसके बाप श्यामलाल (अनुपम शर्मा) एक अय्यास आदमी थे, मोहिनी दुनियादारी समझने लगी तब से उसने देखा कि उसकी माँ जो एक स्टेज डांसर थी, शो करके जो पैसे कमाती थी उसे उसका बाप शराब और जुवे में उड़ा देता था, बीवी की कमाई खाने में वो बेशरमी की सारी हदे पार कर चूका था, उसकी ईस अय्यासी का विरोध करने पर माँ की पिटाई करता था |यह जुल्म के सामने एक दिन मोहिनी की माँ आवाज़ उठाती है तो उसका बाप उसकी माँ के चेहरे पे तेज़ाब फेकता है, ईस दर्दभरी घटना से मायूस हो कर माँ ने जब आत्महत्या कर ली तब मोहिनी का बाप मोहिनी से स्टेज शॉ करवा कर पैसे कमाने के बदइरादे से मोहिनी पे जुल्म करने लगता है, घर की दोजख सी जिंदगीऔर खुद की बेबसी में महेश का प्यार ही था जो उसे सहारा देता था, महेश के दोस्त बबन (चंकी पांडे ) तथा उनका ग्रुप हमेंशा से उनके प्यारके साक्षी एवं शुभचिंतक रहे है, श्यामलाल को मुन्ना और मोहिनी के प्यार के बारे में पता चलता है तो वो नाराज हो जाता है, क्युकी श्यामलाल वो निर्लज्ज बाप है जो अपनी बेटी की शादी नहीं करना चाहता |वो चाहता भी कैसे के मोहिनी की शादी हो क्यों की मोहनी के स्टेज शॉ की कमाई की उम्मीद पर तो उसने लोटिया पठान ( किरणकुमार ) जैसे खुंखार डॉन के पास कर्ज ले रखा था, ये वो लोटिया पठान है जिसका छोटा भाई नन्हे खान नासिक बैंक रॉबरी में मुन्ना की बहादुरी के कारन पकड़ा गया था |
श्यामलाल और लोटिया पठान दोनों को पता चलता है कि उन दोनों का दुश्मन एक है, तब बदले की भावना से लोटिया पठान का छोटा भाई मुन्ना की बहन को उठा ले जाता है और बलात्कार करने की कोशिष करता है,पर मुन्ना सही वक़्त पर पहुंच जाता है, और अपनी बहन को बचा लेता है पर मुन्ना के हाथो छोटे पठान का ख़ून हो जाता है, अदालत में मुन्ना अपने बचाव में तार्किक दलीलें करता है, और अपनी बहन की इज्जत बचाने में उसके हाथो खून हो गया है ऐसा साबित करता है, जिससे मुन्नको हमदर्दी तो मिलती है लेकिन माफ़ी नहीं |एक साल की कैद की सजा मुन्ने को और लोटिया पठान के शागिर्दो को छोड़ दिया जाता है भरी अदालत में मुन्ना चीख- चीख के कहता है,"जज साहब आप गुनहगारों को छोड़ कर बेगुनाह को सजा दे रहे हो, आप मेरे करियर पे खुनी का दाग मत लगाओ |"लेकिन मुन्ना की यह चीखे सिर्फ अदालत की दीवारों को टकराके चूर हो जाती है| अकेली और बेबस बहन को जीवन के संघर्ष का सबक पढ़ाकर हौसला और हिमत देते हुए जेल की और कदम बढ़ाता है |
छोटे भाई की हत्या से प्रतिशोध की आग में जलता लोटिया पठान मुन्ना की बहन को हैरान करने अपने पाले हुवे दरिंदे भेजता है पर सही वक़्त पर आ कर मुन्ना का दोस्त बब्बन (चंकी पांडे ) ज्योति की रक्षा करता है |मुन्ना का मित्रमण्डल लोटीया के इस तरह के जुल्म को कम करने के लिये उसकी ताकत को तोड़ने का प्लान बनाते है;लोटिया के सारे गेरकानूनी कारोबार का पता लगा कर तबाह कर देते है ; उनकी इस हरकत से आग बबूला होते हुवे लोटिया अपने दुश्मन के लिस्ट मे मुन्ना के साथ बबन का भी नाम जोड़ लेता है |
देखते देखते एक साल बीत जाता है मुन्ना जेल से रिहा होता है |मोहिनी की मोहब्बत मुन्ना के इंतजार में है, लेकिन मोहिनी का बाप दोनों के मिलन में रोड़ा बनता है, मोहिनी को मुन्ना के मौत की झूठी खबर देता है, और मोहनी को किसी अनजान जगह पर कमरे में बन्द कर देता है |उनकी चाहत को एक नया मोड़ देने एक ओर किरदार गुलदस्ता (अनु कपूर )की एंट्री होती है |गुलदस्ता मुन्ना की कॉलेज के पास एक कैंटीन में काम करके अपना गुजारा करने वाला एक गरीब इंसान है |गुलदस्ता को एक सफल सिंगर बनने का ख्वाब रेहता है लोग उसके यही पागलपन का फायदा उठा लेते है और अपना उल्लू सीधा कर लेते है,श्यामलाल भी गुलदस्ता की यही कमजोरी का फायदा उठाता है, मोहिनी और मुन्ना की हर जानकारी गुलदस्ता से पाता है, सिंगर बनने की अभिलाषा एवं किस्मत की ठोकरे खाया हुवा गुलदस्ता चंद पैसो की लालच में मोहिनी के बाप के साथ मिलकर मुन्ना को फ़साने के लिए मोहिनी को जहाँ छुपाया गया था वो जगह का पता देता है:मुन्ना मोहिनी की तलाश में वहां जाता है तब उसे चोरी के जुल्म में फसाया जाता है |मुन्ना को जब साज़िस की भनक पड़ जाती है तो वो पुलिस को चकमा दे कर भाग जाता है औऱ अपने बचाव में गुलदस्ता को गवाह बनाकर पुलिस स्टेशन लेके जाता
है |लेकिन अफ़सोस ज़माने की क्रूरता का एक एहसास मुन्ना को यहाँ पर भी झेलना पड़ता है,थाने में भ्रष्ट पुलिस अफसर गुप्ता से उसका पाला पड़ता है, श्यामलाल से ख़रीदा हुवा इंस्पेक्टर गुप्ता गुलदस्ता को मारपीट कर यह बयान देने पर मजबूर करता है की वो अपने साथी मुन्ना के साथ डाका डालने के इरादे से गए थे और इसी जुल्म में गुलदस्ता को एक साल क़ैद एवं मुन्ना को एक साल तड़ीपार का हुकम अदालत देती है |तड़ीपारी के इस साल ख़तम होने में चंद रोज बाकी थे कि मोहिनी को लोटिया पठान के गुंड्डे श्यामलाल की वसूली के चक्कर में उठा लेते है, लोटिया मोहिनी से गलत धंधे करवा करके मोहिनी के बाप श्यामलाल से दीया हुवा कर्ज वसूलना चाहता है |मुन्ना की बहन ज्योति इस बात की खबर मुन्ना को पहुँचती है और मोहनी को छुड़ाने की मिन्नत भी |तड़ीपार मुन्ना समय से पहले अपने लिए वर्जित एरिया में लौटता है, वहां इंस्पेक्टर सिंघ उसे घेर लेते है, मुन्ना अपनी आपबीती सुनाता है, और मोहनी को छुड़ाने के लिए 24घंटे की मुहलत मांगता है और इस के बाद खुद को उनके हवाले करने का वादा भी करता है |
शहर से दुर बसाई थी लोटिया ने अपनी पापकी दुनिया,वही था अपने सभी गलत और बदनाम कारोबार का अड्डा जहाँ पर लोटिया ने मोहिनी को छुपाया था |मुन्ना और उसके साथी लोटीये केपापकी लंका को ढूंढ़ निकाल करके मोहिनी को छुड़ाकर लोटिया के साम्राज्य को आग लगा देते है,आग में लोटिया की पाप की दुनिया जल के राख हो जाती है, रह जाता है तो सिर्फ बदले की आग में जलता लोटिया पठान जिसकी जिंदगी का एक ही मकसद रह जाता है : मुन्ना की मौत |
एक और मुन्ना मोहिनी को लेकर वापस लोट रहा हैऔर मोहिनी के बाप से पैसे लेकर मोहनी के दिल में खुद के लिए नफ़रत पैदा करता है ताकि मोहनी को अपनी खुनी और तड़ीपार के दाग लगी जिंदगी से दूर कर सके और मोहनी किसी दूसरे से शादी कर सुखी हो जाये, तो दूसरी ओर इंस्पेक्टर सिंघ, श्री गुप्ता को पुलिस की ड्यूटी का पाठ पढ़ाते है और मुन्ना के साथ किये हुए गलत व्यवहार का एहसास करवाते है |गुप्ता कोर्ट में मुन्ना के साथ किये गए फरेब को कबूल करता है |और कोर्ट मुन्ना को बेकसूर करार देती है,इंस्पेक्टर सिंघ मुन्ना को फिर से इज्जत की जिंदगी जीने का प्रबंध करते है, गोवा में मुन्ना के रहने -कमाने का इंतजाम करते है, ताकी इस शहर में मिली बदनामी से दूर अपनी जिंदिगी की नये सिरे से शुरुआत कर सके |
कहानी को नया रुख देने के लिए फिर से वोही किरदार गुलदस्ता आता है, वो मोहनी के मन में मुन्ना पैदा की हुई नफ़रत और गलतफहमी को दूर कर मुन्ना के प्यार का एहसास करवा कर मोहनी को मुन्ना को रोकने के लीये कहता है |मोहनी को जाने से रोकने के लीये श्यामलाल आता है, गुलदस्ता उसका सामना करके मोहनी का मुन्ने तक का रास्ता सरल बनाता है |
दूसरी ओर मुन्ना का के ख़ून का प्यासा लोटिया मुन्ना को मारने के लीये आता है, पर मुन्ना के साथी और इंस्पेक्टर सिंघ मुन्ना का साथ देते है,इस लड़ाई झगड़े में मुन्ना का दोस्त बब्बन मारा जाता है, अंत में इंस्पेक्टर के हाथों लोटिया भी ख़त्म हो जाता है और फ़िल्म का सुखद अंत |
1988 में प्रदर्शित फ़िल्म " तेज़ाब" दिग्दर्शक एन. चंद्रा की मसाला एवं मेलोडी हिट थी, इस फ़िल्म को चार फ़िल्म फेयर अवार्ड मिला था :-
1. श्रेष्ठ अभिनेता :-अनिल कपूर
2. श्रेष्ठ अभिनेत्री :-माधुरी दीक्षित
3. श्रेष्ठ नृत्य निर्देशक :-सरोजखान
4. श्रेष्ठ पश्चात् गायिका :-अलका याग्निक
लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के संगीत के साथ सभी गाने सदाबहार है |एक दो तीन गाना माधुरी दीक्षित के करियर का टर्निंग पॉइंट है |फ़िल्म के सभी किरदार को अपने अपने हिस्से के दमदार डायलॉग मिले है जो की दर्शकों को पकड़ के रखते है |
अंत में संदेश यही है कि समाज में पलने वाले गुनाहो के लिए समाज खुद जिम्मेदार है, और गुनाहों को नियंत्रित एवं मिटाना भी समाज के हाथ में है, अतः समाज का हिस्सा होने के नाते अपने समाज के लिए किसी ओर को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते |
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