तारे जमीन पर
बॉलीवुड, जहाँ फिल्मों की कहानी वो कॉम्बो पैक रेहता है जिसमें एक मूल कथा के साथ में एक प्रणय कथा का समन्वय रेहता है, फिल्मों की मूल कथा सामाजिक पहलु से जुडी हो, राजकारण, खेल, तालीम, अंडवर्ल्ड से जुडी हो या कोई धार्मिक कथा हो साथ में एक प्रणय कथा रहती ही रहती है | दूसरे शब्द में कहेंगे तो हिंदी फिल्म की कहानी वो लता है जो प्रणय कथा के वटवृक्ष के सहारे पनपती है, और दर्शक को रिझाने में कामयाब रहती है। लेकिन कुछ चंद फिल्में ऐसी भी हैं जो प्रणय कथा के सहारा के बगैर ही सफलता के सातवें आसमा को चूमा है, "तारे ज़मीन पर" भी ऐसी अनोखी फिल्मों में से एक है |
यह फिल्म की कहानी पढाई के बोज तले दबे बचपन (ईशान) की है, ईशान अवस्थी (दर्शिल सफारी ) एक 8 साल का लड़का है, जिसे स्कूल और पढाई में रुची नहीं है, क्योंकि किताबो और विषयों को समझना उस के लिए मुश्किल काम है। और ईशान की यही कमजोरी के कारन उसे अपने शिक्षको और सहाध्यायी की धृणा का सामना करना पड़ता है, सब के बीच वह अपने आप को अकेला महसूस करता है | कला और पेंटिंग के प्रति उसकी कल्पना, रचनात्मकता और प्रतिभा को देखा अनदेखा कर दीया जाता है, सभी उसकी पढाई के प्रति कमजोरी को कोसते रहते है | ईशान के पिता नंदकिशोर अवस्थी (विपिन शर्मा) अपनी काबिलियत से एक बहुत बड़ा व्यवसाय खड़ा करने में सफल रहे है, वह अपने बच्चों में भी वही प्रतिभा, मेहनत और सफलता की उम्मीद रखते है।उनका बड़ा बेटा योहान अवस्थी (सचेत इंजीनियर) उम्मीदों पे खरा उतरे ऐसा बेटा है, योहन एक होनहार छात्र ही नहीं बल्कि एक धुरंधर एथलीट भी है, उसकी प्रतिभा दूसरे छात्रों के लिए भी प्रेरणादायी है, लेकिन छोटे ईशान अपने भैया के सामने शर्मिंदा है , दुसरी ओर दोंनो की माँ माया अवस्थी (तिस्का चोपड़ा) ईशान के पीछे महेनत करती है कि उसको पढाई लिखाई में मार्गदर्शन देकर आगे बढ़ने में मदद करे -लेकिन उनकी यह कोशिष नाकामयाब रहती है और छोटे बेटे के लिए परेशान और उदास रहती है | ईशान भी अपनी पढाई की ओर कमजोरी के कारन परेशान और शर्मिंदा रेहता है लेकिन किसी को बता नहीं पाता है |
कहानी में मोड़ आता है और पहले से परेशान नादान ईशान के जीवन में करुणा और क्रूरता का प्रवेश होता है, और उसकी शुरुआत तब होती है, जब शैक्षणिक वर्ष का निराशाजनक रिपोर्ट आने के कारण ईशान को बोर्डिंग स्कूल में भेजने का निर्णय उसके माता-पिता लेते है | बोर्डिंग स्कूल ईशान के लिए पहले वाली स्कूल से बहुत दुखदायी साबित होता है। अध्ययन के लिए कोई मार्गदर्शन मिलना तो दूर, हर जगा अपमान ही अपमान मिलता है, अपनी माँ से बिछड़ा हुवा और परिवार से दुर ईशान डर, चिंता और अवसाद में डूब जाता है, इस दुःखभरी जिंदगी में ईशान बिल्कुल अकेला पड़ जाता है, उस समय उसको सहारा देने के लिए सिर्फ राजन दामोदरन ही उसका अपाहिज सहपाठी ही था जो उसकी उदास जिंदगी को हल्का सा आसरा देता है। ”
कहते है की हररात के अँधेरे के बाद उजाले की किरन निकलती ही है , उसी तरह ईशान की जिंदगी में रामाशंकर निकुंभ (आमिर खान) आता है | निकुंभ एक कला टीचर है कोई स्कूल मे विकलांग बच्चो को पढ़ाते है, वो ईशान की स्कूल में टेम्पररी आते है | हसमुख और आशावादी प्रकृति के, निकुंभ की शिक्षा शैली उसके पूर्ववर्ती सख्त प्रशिक्षणदाताओं से भिन्न है। वह शैली ईशान की
उदासी और परेशानी को पहचान लेती है, वो ईशान और उसकी परेशानियों का विश्लेषण करते हैं और ये निष्कर्ष निकालते हैं, ईशान को डिस्लेक्सिया है, डिसलेक्सिया में इंसान को पढ़ने लिखने और समझने में परेशानी होती है निकुंभ ईशान के मातापिता को मिलने उसके घर जाते हैं, माता-पिता से मिलकर ईशान की पुरानी पेंटिंग देखकर उसकी सर्जनात्मकता का अंदाजा लगाते हैं।उसकी पुरानी नोट्स देखकर उसको पढाई में होनेवाली परेशानी को समझते है |नयी नयी युक्ति लगाकर के ईशान की पढाई के संबधित परेशानी दुर करने की कोशिष करते है |वो डिसकलेसिया के विशेषज्ञो द्वारा विकसित उपचारात्मक तकनीकों का उपयोग करके ईशान के पढ़ने और लिखने में सुधार करने का प्रयास करते है |
अकादमिक ईयर के अंत में निकुंभ स्टाफ और छात्रों को साथ में एक पेंटिंग कम्पटीशन रखता है, जिसमें ईशान अपनी रचनात्मक शैली के कारन विजेता घोषित किया गया है। प्रिन्सिपाल निकुंभ को स्थाई कला शिक्षक के रूप में रख लेते है, स्कूल के आखरी दिन उसके माता पिता सभी शिक्षकों मिलते हैं। और अपने बेटे में हुवे बदलाव को देखकर दंग रह जाते है, वो निकुंभ से धन्यवाद व्यक्त करते है | ईशान वेकेशन में घर जाने के लिए पिता की कार की और जाता है, वहा से पलट कर निकुंभ की ओर आता है जो उसे गले लगा लेता है, ओर फिल्म का सुखद अंत होता है |
फिल्म में दर्शील सफारी की अदाकारी सराहनीय है, फिल्म के गानो में "अंधेरो से डरता हु में माँ" एक भावनात्मक गीत है वो छोटे से ईशान के दिल की व्यथा प्रदर्शित करता है, जब की "बम्ब बम्ब भोले" एक ताजगी से भरा गीत है | जो उभरते हुवे बच्चों में उत्साह का संचार करता है |
अंत में कहेंना जरुरी है कि बच्चो की प्रतिभा स्कूल के प्रोग्रेस कार्ड के ग्रेड से नहीं नाप सकते , उसके ओर भी नापदंड हो सकते है | माँबाप ओर प्राध्यापकों को पढाई का माहौल इतना सरल बनाना चाहिए के बच्चों को पढाई खेल और मनोरंजन लगे ऐसा कभी नहीं होना चाहिए। के पढाई उनके लिए एक खौफ बनके रह जाये|
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