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Manthan- movie , मंथन फिल्म -ऐक समीक्षा।

Manthan movie - a review
               
               Manthan movie story in Hindi 

        भारत की अधिकतर जनसंख्या गाँवो में बसी है, और उनकी आमदनी कृषी पर निर्भर है। भारत की इसी ग्रामीण अर्थव्यस्था सुद्ढ करने में डेरी उधोग की प्रमुख भूमिका है । कृषी एवं डेरी उधोग के बीच परस्पर निर्भरता वाले संबंध है , आंतरराष्ट्रीय  बाजार में भारत का अपना विशेष स्थान है । और यह विश्व में सबसे बड़ा दुध उत्पादक और दुध उत्पादो का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक  देश है , भारत को इस शिखर पर ले जाने का श्रेय वर्गीस कुरियन को जाता है, वर्गीस कुरियन ने सहकारीता के जरिए दुध उत्पादन को जनांदोलन बनाया , उन्हों ने जिसके लिये काफी संघर्ष किये , इसी संघर्ष का प्रतिबिंब हैफिल्म "मंथन" ।                                                                                               वर्गीस कुरियन से प्रेरित होकर डायरेक्टर  श्याम बेनेगल ने 1976में यह फिल्म का सर्जन किया । फिल्म की कहानी गुजरात के खेड़ा जिले के एक छोटे  से गाँव की है, जहाँ के लोगो का मुख्य व्यवसाय पशुपालन है । इसी व्यवसाय से प्राप्त दुध को गाँव के मिश्राजी (अमरीश पुरी )को बेचते थे जिस की खुद की एक डेरी थी,मिश्रा बदले में जो दाम देते थे उसीसेे सभी का गुजारा होता था । मिश्रा उनके दुध को काफी कम दाम से हड़प लेता था और गाँव  के लोगो  का शोषण करता था ।  मिश्रा  गाँव वालो  को उनके पशुओ की खरीदारी के लिये, ईलाज के लिये इसी   प्रकार कई तरह कर्ज देता है जो कभी पुरा ही नहीं होता था । ऐसे में  डॉ राव (गिरीश कनार्ड)  अपने साथी देशमुख (मोहन आग्से) और चंदावरक(अनंत नाग) के साथ सहकारी society के रूप में संचालित डेरी की संकल्पना लेकर -(जो की गाँव वालो की अपनी सामूहिक मालीकी की हो  ,  जिसका संचालन  भी खुद गांववालों  मिलकर करे )  आते है ।शुरू में गाँववाले डॉ रावकी  बात को और उससे होनेवाले फायदे को समज नहीं पाते है ।लेकीन डॉ राव अपने उदेश्यके लिये लगातार कार्यरत  रहते है । आखिरकार डॉ राव गाँव की एक औरत बिंदु (स्मिता पाटिल) और कुछ गांववालों को दुध के टेस्टिंग और उसमे रहे fat के हिसाब से दाम मिलने के बारे में एवं मिश्रा द्वारा।होने वाली ठगी के बारे में समजाने में सफल होते    है ।  उनकी सोसायटी की शुरुआत होती है, डॉ राव  और उनके साथी गांववालों की मीटिंग रखकर  सोसायटी की  सभी प्रवृति और उनसे होने वाले फायदे के बारे में समजाते है । डॉ राव और उनके साथी समजा बुजाकर गाँव के सरपंच(कुलभूषण खरबंदा )  को भी सोसायटी  में जोड़ लेते है , और उस कारण बाकी बचे लोग भी सोसायटी में जुड़ते है।  डॉ राव अब हरिजन समाज को सोसायटी में  जोड़ने का आयोजन करते है ।  उसके लिये वो उनके समाज के नेता भोला ( नसीरुद्दीन शाह ) को  समजा लेते है , इसी तरह वो हरिजन  समाज  को भी अपने साथ जोड़कर   सहकारिता की अपनी यात्रा आगे बढ़ाते है ।   परंतु डॉ राव के लिये सफलता अभी दूर थी  , उनकी योजना को स्थानिक राजनीति एवं पुराने जातिवाद का सामना करना पड़ा । हरिजन  नेता भोला क्रोधित स्वभाव  का तथा उच्च ज्ञाती  के सरपंच के बिल्कुल खिलाफ रेहता था ।   राव सोसायटी के प्रमुख का चुनाव आयोजित  करते है ।  चुनाव  में हरिजन का प्रतिनिधि  मोती सरपंचके    सामने जीत जाता है । सरपंचके अहम को ठेस  पहुचती है । वो मिश्रा के साथ मिलकर गांववालों को हैरान करता है और इस तरह की चाल चलता  है कि सोसायटी का करोबार बिखर जाए और सभी वापस मिश्रा की  डेरी में जाने लगे ।यही सभी तनाव भरी परिस्थिति  में राव की पत्नी की तबीयत  खराब हो जाती है ,  वो गाँव छोड़कर चले  जाते है ।   लेकीन भोला को डॉ राव की  मेहनत का अंदाजा है  ,वो और   बिंदुु कुछ   गाँव वालो  के साथ  मिलकर  काम को आगे बढ़ातेे  है , मेहनत करते है, डॉ  राव के ख्वाब को।सफलता का  अंजाम देते है ।                                                                                                                                                                           भारत की "श्वेत क्राँति" पर बनी इस फिल्म अपने आप में सहकारीकता की परिभाषा है ;क्योकि ये एक crowed funded फिल्म है, जिसको बनाने के लिये भारत के 500000  ने  2 रुपैये का चंदा देकर fund इकठा किया  था । इस फिल्म को  best feature film का national film award एवं best screenplay का  national film award मीला है ।  फिल्म की गायिका प्रीति सागर को film fare award मीला है । बाकी फिल्म के कलाकर गिरीश कनार्ड, स्मिता पाटिल, अमरीश पुरी, नसरुद्दीन शाह के अभिनय के बारे में  बोलने    की जरूरत नहीं है; क्युकि  हिंदी फ़िल्मो को चाहनेवाले को उनके अभिनय के बारे में बताना सुरज को रोशनी बताने के बराबर है ।                                                                                                                                                                         फ़िल्म के बारे में संक्षिप्त  में यही  कह सकते है, "बिना सहकार, नहीं उद्धार " । सहकारिता से भारत में "श्वेत क्राँति" आ सकती है, तो सहकार की भावना से इंसान अपनी निजी जीवन को उज्जवल क्यूँ नहीं बना सकता ?                                                                                                                                               

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